नगर से आप क्या समझते हैं? भारतीय नगरीय जीवन के प्रमुख लक्षण कौन-कौन से है अवधारणा
प्रश्न 2-- नगर की अवधारणा को स्पष्ट करे । भारतीय नगरीय जीवन के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कों।
नगर से आप क्या समझते हैं? भारतीय नगरीय जीवन के प्रमुख लक्षण कौन-कौन से है ?
उत्तर नगर की अवधारणा 'नगरीय समुदाय', "नगरीय क्षेत्र' तथा 'नगर' ( "शहर" ) पर्यायवाची शब्द हैँ जिनकी कोई सर्बमान्य परिभाषा देना कठिन है। विमिन देशो' में नगरीय शब्द का अर्थ एक जैसा नहीं है। भारत मे' 'नगरीय क्षेत्र' का सम्बन्ध करबो तथा नगरों दोनों से है। इसीलिए भारत मे' नगर क्रो कस्बे से भिन्न बताने के लिए कोई सुनिश्चित परिभाषा नहीं है। नगरीय क्षेत्रों में मुख्य रूप से बस्तियों के उस समूह क्रो सम्मिलित किया जाता है जिसके निवासी मुख्यत: गैर-कृपि व्यवसायों में संलग्न होते हैं। अत: 'नगरीय' शब्द का प्रयोग कस्बे, नगर, उप-नगर, महानगर, विऐव नगर इत्यादि शब्दों के स्थान पर किया जाता है। नगर से अभिप्राय एक ऐसी केन्दीकृत बस्तियों के समूह से है जिसमें सुव्यवस्थित केन्दीय व्यापार क्षेत्र, प्रशासनिक इकाई, आवागमन के विकसित साधन तथा अन्य नगरीय सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल ’,7 935 नगर थे। यह संख्या 2001 की जनगणना के अनुसार 5,161 थी। इस प्रकार नगरों की संख्या मे निरन्तर बृद्धि दिखाई देती है। उनमे नगर एवं महानगर तथा विराट नगर मी सम्मिलित हैं।
नगर की परिभाषा देना मी एक कठिन कार्यं है। 'अनेक विद्वानों ने नगर की परिभाषा जनसंख्या के आकार तथा घनत्व क्रो सामने रखकर देने का प्रयास किया है। र्किंररले डेविस (छानुहहाँआ 0६७53) इससे बिल्कुल सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि सामाजिक दृष्टि से नगर परिस्थितियों की उपज होती है। उनके अनुसार नगर ऐसा समुदाय है जिसमेँ सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक विषमता मायी जाती है। यह कृत्रिमता, व्यक्तिवादिता, प्रतियोगिता एवं घनी जनसंख्या के कारण नियन्त्रण के औपचारिक साधनों द्वारा संगठित होता हैं। सोमबर्ट ने घनी जनसंख्या पर बल देते हुए इस सन्दर्भ मेँ कहा है, "नगर एक वह स्थान है जौ इतना बडा है कि उसके निवासी परस्पर एक-दूसरे क्रो नहीं पहचानते हैं।" लुईस विर्थ (णाम्भी) ने द्वितीयक सम्बन्धों, भूमिकाओं के खगडीकरण तथा लोगों में गतिशीलता की तेजी इत्यादि विशेषताओं के आधार पर नगर क्रो परिभाषित करने पर बल दिया है। विर्थ के अनुसार नगर अपेक्षाकृत एक व्यापक, घना तथा सामाजिक दृष्टि से विजातीय व्यक्तियों का स्थायी निवास क्षेत्र है। इन्ही' के आधार पर नगरीय समुदाय के लक्षण निश्चित किए जाने चाहिए।
नगर, के साथ…साथ क्तिच्च णम्भप्रण । स्थाअहैंणायाँडि , "विराट नगर' इत्यादि शब्दों का मी प्रयोग किंग जाता है' इन सब शब्दों मे क्या के आकार, जनसंख्या के घनत्व, आवागमन एवं स्का
साधनो की सुविधाओ इत्यादि के आधार पर अन्तर किया जाता है। भारत में 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों को महानगर कहा जाता है, जबकि 50 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों क्रो "विराट नगर' कहा जाता है। भारत में 4 बिरादृ ८नगर प्रमुख हैं-मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली और चेन्नई (मद्रास) । 'विश्व नगर' हैचु जनसंख्या के आकार को कोई बिशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है। विश्व नगर उसे कहा जाता है जहाँ विश्व के अधिकांश भागों के लोग रहते हों। भारत मेँ मापिडचेरी (मुदुचेरी) कौ विश्व नगर माचा जम्पा है। वैसे चारों विराट नगर भी एक प्रकार से विश्व नगर ही हैं। 'नगर-समूह' अथवा "क्रोक्वेंदृम्पा शब्द से अभिप्राय निरन्तर विस्तारित होते हुए ऐसे नगरीय क्षेत्र से है जिसकी रचना कहँ पूर्व पृथकृ नगरों द्वारा हुईं होती है। दिल्ली क्रोनवेंशन तथा कोलकाता' कोनबेंशन कुंभार-समूह' के
उदाहरण हैं।
भारतीय नगरीय जीवन के प्रमुख लक्षण अथवा नगरीय समुदायों के प्रमुख लक्षण
भारतीय नगरीय जीवन अथवा नगरीय समुदाय के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैँक्या
(1) विषमता-नगरीय समुदाय के लोगों के रहन-सहन और रीति-रिचाजों में समरूपता नहीं पायी जाती है। नगरों में विथिन्न रीति-रिचाज, विचारों, व्यवसायों तथा संस्कृतियों के लोग एकत्र होते हैँ जिससे उनमें विषमता आती है। अत: नगरीय समुदाय विजातीयता वाले समुदाय होते हैं।
' (2) अप्रत्यक्षसम्यर्क-नगरीय समुदाय में लोगों के सम्बन्धों में घनिष्ठता नहीं होती तथा उनमें प्राय: अप्रत्यक्ष सम्बन्य पाए जाते हैँ। इसका मुख्य कारण नगरों क्री जनसंख्या है। वास्तव में जनसंख्या ही इतनी अधिक होती है कि सभी मेँ प्रत्यक्ष सम्बन्थ नहीं हो सकते हैं।
(3) सहिष्णुता-नगरीय समुदाय के लोगों में रीति-रिचाजों, रहन-सहन, खान-मान की विषमता पायी जाती है किन्तु फिर भी लोग ऐसा जीवन बनाए रखते हैँ कि वे एक-दूसरे " बातों को सहन करते हैं। इससे सहिष्णुता को प्रोत्साहन मिलता है। .
(4) नियन्त्रण में शिथिलता-नगरों में कानून जैसे औपचारिक साधनों व ३ 3 समूहों द्वारा नियन्त्रण स्थापित किया जाता है। इस प्रकार के नियन्त्रण से सुव्यवस्था कम हो में स्थापित हो सकती है। नियन्त्रण के अनौपचारिक साधनों का महत्त्व समाप्त हो जाता जिससे नगरों के नियन्त्रण में शिथिलता पायी जाती है।
(5) सामाजिक गतिशीलताड-यातायात के साधनों में विकास होने के कारण नगर निवासी एक स्थान से दूसरे स्थान क्रो आते-जाते रहते हैँ। वे आजीविका या व्यवसाय की खोज
में भी इधर-उधर घूमते रहते हैं। समाज की प्रथाओं में परिवर्तन करने मे' भी उन्हें संकोच नहीं होता है। अतएव नगरों में सामाजिक गतिशीलता का गुण माया जाता है।
(6) ऐच्छिक सम्पर्क-नगरी' में व्यक्ति अपनी इच्छानुसार चाहे जिसके साथ सम्पर्क स्थापित क्ररे या न की। ऐच्छिक सम्पर्क के कारण ही नगरों मे' ऐच्छिक समितियों की संख्या बढने लगी है।
' (7) व्यक्तित्व का विकासं-नगरी' में व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार पद प्राप्त कर सकता है तथा अपना विकास कर सकता हैं। गतिशीलता के अधिक अवसर होने के कारण तथा अजित गुणों की महत्ता के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास इच्छानुसार हो सकता है। १ ८
(8) व्यक्तिवादिताड-नगरो' में व्यक्ति स्वार्थ की ओर ही ध्यान देता है। अतएव नगरों में सामाजिकता के स्थान पर व्यक्तिवादिता मायी जाती हैं। नगरीय जीवन इतना व्यस्त है कि उन्हे' दूसरों के सुख-दु:ख में भाग लेने का समय ही नहीं मिलता। परिवार के सदस्यों तक में ३ व्यक्तिवाद की भावना विकसित होने लगती है।